आप ने antarvasna sex stories के पिछले भाग में पढ़ा निर्मला ने भी उसकी मदद की और राजशेखर ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया अब निर्मला ने मुझे राजशेखर की गोद में ही छोड़ दिया और अलग हो गयी मैं अभी भी राजशेखर की गोद में लटकी हुयी पागलों की तरह उसके होंठों को चूम रही थी और चरम सुख की कामना में थी अब आप antarvasna sex stories में आगे पढ़े
Antarvasna Sex Stories 27
राजशेखर भी अब अन्तिम क्षण के लिये पूरे जोश में दिख रहा था और मेरी जांघों को पकड़े हुये पूरी ताकत से मुझे धक्के मार रहा था हम दोनों लम्बी लम्बी सांसें लेने के साथ कराह और सिसक भी रहे थे
मेरी मस्ती इतनी भर गयी थी कि मेरा मन हो रहा था कि मैं खुद राजशेखर को जमीन पर पटक दूं और उसके लंड पर मनमाने तरीके से सवारी करूं तभी राजशेखर ने मुझे बिस्तर पर एकाएक गिरा दिया और मेरे साथ खुद भी मेरे ऊपर आ गिरा
उसने मेरी बांयी टांग को घुटने के नीचे से हाथ डाल उठा कर ऊपर कर दिया इससे मेरी टांग मेरे सीने तक उठ गयी दूसरी टांग मैंने खुद ही उठा कर उसकी कमर में रख दी ताकि धक्के अंदर गहरायी तक जाएं और किसी तरह की रुकावट ना हो
इसके साथ ही मैंने उसे दोनों हाथों से गले में हाथ डाल पकड़ लिया उसने भी मुझे दूसरे हाथ से मेरे कंधे को ऐसे पकड़ा कि अगर जोरों के धक्के भी लगें तो मैं अपनी जगह से आगे सरक ना पाऊं
हम दोनों अब चरम शिखर पर पहुंचने को तैयार थे और एक दूसरे को चूमना छोड़ कर एक दूसरे की आंखों में आंखें डाल कर देखते हुये धक्कों की गिनती बढ़ाने लगे
उसका लंड मेरी बच्चेदानी में ज़ोर ज़ोर से चोट करने लगा और मेरे मुंह से कामुक आवाजें निकलने लगीं उधर राजशेखर के मुंह से भी आवाजें आने लगीं और हमारे ज़ोरदार सेक्स की आवाजें भी कमरे में गूंजनी शुरू हो गयी धक्कों की अवाज थप थप फच फच आ रही थी
राज- उम्म्म हम्मम
मैं- आह्ह्ह अह्ह्ह ओह्ह्ह
हम दोनों मानो एक दूसरे को पछाड़ने में लगे थे करीब 3-4 मिनट तक हम ऐसे ही संभोग करते रहे मुझे उसके लंड से इतना आनंद आ रहा था कि क्या कहूं उसके लंड की चमड़ी घुसते निकलते मेरी चूत की दीवारों से खुलते बंद होते हुये रगड़ती
मेरी बच्चेदानी पर चोट लगती तो हर बार ऐसा लगता जैसे उसका लंड एक करंट सा छोड़ रहा है जो मेरी नाभि तक जा रहा और मेरी चूत की नसों को ढीला करने पर मजबूर कर रहा है
राजशेखर जितना ज़ोर ऊपर से लगा रहा था उतना ही ज़ोर मैं भी नीचे से लगाने का प्रयास करने में लगी थी अब तो मन में केवल झड़ने की लालसा थी वो भले कुछ नहीं कह रहा था पर उसकी आंखों से लग रहा था मानो मुझसे कह रहा हो कि बस थोड़ी देर और साथ दो मैं अपना प्रेम रस तुम्हें देने ही वाला हूं
मैं भी उसे ऐसे ही देख रही थी और मेरी आंखों में भी मेरी रजामंदी थी- हां मैं अंत तक साथ दूंगी तुम्हारे रस को ग्रहण करने तक साथ बनी रहूंगी
मेरे दिल में बस चरम सुख की एक ही चाहत जग रही थी और मैं मन ही मन में हर धक्के पर बोलने लगी थी कि राज और ज़ोर से और अंदर तक और ज़ोर से और अंदर
फिर अचानक मुझे ऐसा लगा कि उसके लंड से एक चिंगारी छूटी और अगले ही पल मुझे मेरी नाभि से फुलझड़ी सी जलने सा महसूस हुआ
मैं एक पल चिहुंक उठी और पूरी ताकत से राजशेखर को पकड़ कर अपने चूतड़ों को उठाते हुये चूत एकदम ऊपर करके बोल पड़ी आयीईई रुकना मत मारते रहो
राजशेखर भी तो बस पास में ही था वो भी जोरों से गुर्राया ले ये ले उसने एक सांस में धक्के तेज़ी से मारना शुरू कर दिए मेरा पूरा बदन झनझनाने लगा और मेरी चूत की मांसपेशियां आपस में जैसे सिकुड़ने सी लगीं
मुझे ऐसा लगा कि जैसे मुझे बहुत जोरों से पेशाब लगी हो पर मैं उसे रोकना चाह रही हूं पर ये सम्भव नहीं था मेरी चूत तथा जांघों हाथों पेट सभी की नसें सख्त हो गयी थीं पर लंड के लगातार हो रहे प्रहार से मेरे भीतर का सैलाब ना रुक पाया और मैं थरथराते हुये झड़ने लगी
मैं राजशेखर को पूरी ताकत के साथ पकड़ कर लंड से हो रहे धक्कों के बावजूद अपनी चूत उठा उठा लंड पर चोट करती रही और मेरी चूत से पिच पिच कर पानी छूटता रहा
मैं अभी करीब 5 से 7 बार उसके लंड पर चोट कर चुकी थी और शायद और भी चोट करती क्योंकि मैं एक लय में थी और बहुत तीव्रता से झड़ रही थी
तभी राजशेखर का भी लावा फूट पड़ा और उसके लंड से वीर्य की पिचकारी छूटते ही उसने समूचा लंड मेरी चूत में धंसा दिया उसने मुझे बिस्तर पर पूरी ताकत से दबा दिया उसका पूरा लंड मेरी चूत में जड़ तक था
वो लंड बाहर ही नहीं खींच रहा था बल्कि उसी अवस्था में झटके मारते हुये झड़ने लगा मैं खुद भी नीचे से अपने चूतड़ों को उठाना चाह रही थी मगर मैं उसके दबाव के आगे असमर्थ थी
फिर भी आनंद में कोई कमीं नहीं आयी बल्कि हम दोनों ने सफलता पूर्वक अपने लक्ष्य को पा लिया था उसके लंड से निकलता गर्म वीर्य भी बहुत सुखदायी लग रहा था
मैं तब तक चूत उठाने का प्रयास करती रही जब तक मैं पूरी तरह से झड़ ना गयी और मेरी चूत तथा शरीर की नसें ढीली ना पड़ने लगीं हालांकि मैं अपने चूतड़ उठा नहीं पा रही थी
ठीक मेरी तरह ही राजशेखर मुझे तब तक झटके मारता रहा जब तक उसने अपने वीर्य की थैली की आखिरी बूंद मेरी चूत की गहरायी में ना छोड़ दी फिर हम दोनों एक दूसरे की गोद में ढीले होने लगे
मन में संतोष और पूरे बदन में थकान महसूस होने लगी थी पर मेरा मन राजशेखर को अलग नहीं होने देने को हो रहा था इतना आनंद आने वाला है अगर ये पहले से पता होता तो शायद मैं कान्तिलाल को पिछली रात खुद को रौंदने ना देती और शायद ये मजा और कई गुणा बढ़ गया होता
हम दोनों काफी देर तक आपस में लिपटे सोये रहे तभी राजेश्वरी की आवाज़ आयी
राजेश्वरी- तुम दोनों आज ऐसे ही सो जाओ बहुत जबर्दस्त तरीके से चुदाई की तुम दोनों ने
राजेश्वरी की बातें सुन हम थोड़े अलग हुये पर राजशेखर का लंड अब भी मेरी चूत के भीतर था वो थोड़ा और ऊपर उठा और मुझे मुस्कुराते हुये देख कर बोला मजा आ गया आज से पहले ऐसे किसी को नहीं चोदा था ना ही किसी ने मुझसे चुदवाया था
इस पर राजेश्वरी ने रुखे शब्दों में कहा- इसका मतलब तुम्हें मेरे साथ मजा नहीं आता?
राजशेखर फौरन उठा और राजेश्वरी के हाथ पांव जोड़ने लगा और माफ़ी मांगने लगा सभी खुशी खुशी हंसने और मजाक करने लगे और माहौल फिर खुशमिजाज हो गया
सुबह के 5 बज गये थे और हम सब संभोग और नशे से थक चुके थे हल्की फुल्की बातें और हंसी मजाक करते हुये जिसको जहां जगह मिली सो गये
अगले दिन 12 बजे मेरी नींद खुली तो देखा कि बिस्तर सोफे जमीन हर जगह वीर्य और हम औरतों के पानी के दाग थे जो सूख गये थे चादर का तो कोई एक कोना बाकी नहीं था जिसमें दाग ना हो
मेरी खुद की चूत और जांघों पर वीर्य सूख कर पपड़ी बन चुकी थी क्योंकि अन्तिम औरत मैं ही थी जिसने वीर्य ग्रहण किया था जिसको थकान की वजह से बिना साफ किए सो गयी थी
सब लोग उठ गये और फिर नहा धो कर तैयार हो गये रात भर की मौज मस्ती इतनी हो गयी थी कि अगले दिन किसी में हिम्मत ही नहीं बची थी कि कुछ कर पाए अंत में हम सब अपने अपने घर के लिये तैयार हो गये
निर्मला और उसका पति मुझे मेरे घर छोड़ने को तैयार हुये सबने मेरा फोन नम्बर लिया और फिर शाम को 7 बजे मुझे हवाई जहाज से धनबाद छोड़ दिया निर्मला और उसका पति धनबाद तक मेरे साथ आए और फिर मुझे हवाई अड्डे पर छोड़ कर अपने घर को चले गये
आने से पहले कविता ने मुझसे बोला कि तुम्हारी वजह से रवि ने पहली बार किसी दूसरी महिला की तारीफ की और इसका बदला वो मुझसे जरूर लेगी खैर ये उसने मजाक में कहा था बाकी मेरे जीवन का सबसे यादगार और सबसे अधिक अनुभवी साल यही रहा
मैंने ना केवल उन चीजों को देखा जो असल जीवन में मैंने कभी नहीं देखा था उन सुख सुविधाओं का भोग किया जो मेरे लिये संभव नहीं था एक संतुष्ट और कामुक भोग से नये साल की शुरूवात हुयी और इससे बेहतर क्या नया साल होगा
नये साल की मस्ती के बाद मैं करीब एक महीने तक शांत रही इस बीच केवल पति के ही साथ 2 बार संभोग हुआ और फिर एक महीना ऐसे ही बिना संभोग के बीत गया केवल दूसरों को कैमरे पर सेक्स का मजा लेते देते देखती रही
इस दौरान कविता से मेरी काफी नजदीकियां बढ़ गयी थीं वो हमेशा मुझे फोन कर बातें करती रहती थी या वीडियो कॉल कर मुझे देखना पसंद करती थी मैं ये बात समझ गयी थी कि उसे समलैंगिक संभोग पसंद है इसी वजह से मुझसे इतना बात करती थी
इसी दौरान एक दिन मेरे घर पर प्रीति आयी हुयी थी और उसी वक्त कविता ने वीडियो कॉल किया वो मेरे साथ बैठी प्रीति को देख मुग्ध हो गयी ठीक इसी के बाद उसने मुझ पर ज़ोर देना शुरू कर दिया कि प्रीति के साथ उसकी मुलाकात करवाऊं
मैंने उससे कुछ समय मांगा क्योंकि मुझे यकीन तो था नहीं कि प्रीति समलैंगिक रिश्तों को पसंद करती थी दूसरी तरफ मुझे ये भी डर था कि मेरी दोहरी जीवनशैली का उसे पता चल सकता था इसलिये मैं कविता को किसी ना किसी बहाने से टालने लगी
इसी तरह 15-20 दिन गुजर गये और एक दिन मैं पति के साथ बाजार गयी हुयी थी हम दोनों कुछ फल और सब्जियां खरीद रहे थे तभी एक बड़ी सी गाड़ी हमारे सामने आकर रुकी उस गाड़ी में एक आदमी और उसका ड्राइवर था
मुझे देख कर वो मुस्कुराया मैं कुछ देर सोच में पड़ गयी पर जब मैंने उसे ध्यान से देखा तो वो मुझे जाना पहचाना चेहरा लगा मुझे अचानक से याद आया कि ये सुरेश है जो मेरे साथ बचपन में पढ़ता था
सुरेश हम दोनों के पास आया और मुझे बोला- पहचाना मुझे?
मैं थोड़ी आश्चर्य से देखती हुयी बोली- हां पहचान लिया
फिर उसने मेरे पति को अपने बारे में बताया और फिर उन दोनों की जान पहचान हो गयी अब मैं सुरेश के बारे में बताती हूं सुरेश और मैं एक साथ ही स्कूल में पढ़े थे वो मेरे ही गांव का था
उसके पिता सरकारी नौकरी में थे और हम 3 सहेलियां और वो अच्छे दोस्त थे उसके पिता के पास काफी पैसा था तो वो आगे पढ़ने के लिये बाहर चला गया अब सुरेश कोयले की इसी सरकारी कंपनी में एक बड़ा अधिकारी है और हाल ही में उसका तबादला यहां हुआ है
हम दोनों की उम्र बराबर है इसलिये मेरे पति को आप कह कर बात कर रहा था मेरे पति को भी जब लगा कि उसकी इस सरकारी नौकरी की वजह से उसका काम निकल सकता है तो उन्होंने फौरन उसे हमारे घर बुला लिया और चाय नाश्ता करवाया
इसी बीच बातों बातों में पता चला कि उसकी केवल एक बेटी है जो बाहर पढ़ रही और पत्नी का 2 साल पहले बीमारी की वजह से स्वर्गवास हो गया ये सुन कर मुझे बहुत बुरा लगा
इसलिये मैंने उससे कहा- जब हम लोग एक ही शहर में रहते हैं तो जब मन हो खाना खाने आ जाया करे
मेरे पति ने भी इस बात का समर्थन किया और उसने भी कहा कि जरूर आयेगा उस दिन वो चाय नाश्ता करके चला गया और फिर रविवार को आया मैंने उसे सम्मान से बिठाया और खाना पीना दिया वो मेरे पति से काफी घुल मिल गया था
मुझे भी अच्छा लग रहा था कि चलो इतने सालों के बाद कोई तो बचपन का साथी मिला पर ये अंदेशा नहीं था कि आगे क्या होने वाला है खैर इसी तरह करीब एक महीने तक हर शनिवार और रविवार वो हमारे घर आ जाता कभी दिन या कभी रात में
फिर एक दिन मेरे पति बाहर गये थे और मैं अकेली थी उस दिन ना तो रविवार था ना शनिवार अचानक किसी ने दरवाजा खटखटाया मैंने दरवाजा खोला तो सामने सुरेश था मुझे कोई खासा हैरानी नहीं हुयी क्योंकि वो मेरे बचपन का दोस्त था
वो अंदर आया तो मैंने उसे बिठाया और खाना आदि खिलाया खाना खाते हुये उसने बताया कि आज उसे डॉक्टर के पास जाना था इसलिये छुट्टी ले रखी थी मैंने भी खाना खा लिया और फिर दोनों बातें करने लगे
हम अपनी पुरानी बचपन की यादें करते हुये हंसी मजाक करने लगे तब उसने बताया कि उस समय उसने मुझे एक पेन दिया था जो कि दो रुपये का था और मैंने अभी तक उसका उधार नहीं चुकाया था बात अब इसी एक बिंदु पर अटक गयी और हंसी मजाक करते हुये मैं उसे उसके पैसे देने लगी
उस वक्त का दो रुपया भी आज के हिसाब से बहुत ज्यादा था हमारे बीच हंसी मजाक चलता रहा और मैं पैसे उसके हाथ में जबरदस्ती थमाने लगी इसी लेने देने के ज़ोर जबरदस्ती में अचानक उसका हाथ मेरे मम्मों से जा लगा और फिर हम दोनों शांत हो गये
उसने भी शर्मिंदगी सी महसूस करते हुये नजरें झुका लीं और मैं भी शर्माती हुयी उससे अलग होकर बैठ गयी थोड़ी देर हम यूं ही चुप बैठे रहे फिर उसने जाने को बोला और जाने लगा वो अभी दरवाजे तक भी नहीं पहुंचा था कि पता नहीं मेरे मन में क्या आया कि मैंने उससे रुकने को बोल दिया
मैंने कहा- रुक जाओ अकेले मेरा भी मन नहीं लगता थोड़ी देर और बातें करते हैं
वो शायद इसी ऑफर का इंतजार कर रहा था वो रुक गया और वापस आकर बैठ गया हमने फिर से हल्की फुल्की बातों से सुख दुख कहना शुरू किया फिर बात उसके अकेलेपन की शुरू हो गयी
उसने बताया के पत्नी के गुजरने के बाद वो बिलकुल अकेला हो गया है मैंने भी अपनी जीवन की सारी बात कहनी शुरू कर दी
मैंने उसे बताया कि कैसे मैं ससुराल वालों से परेशान होकर यहां आयी और अब यहां भी अकेली रहती हूं क्योंकि पति ज्यादातर बाहर रहते हैं चूंकि हम दोनों बचपन के दोस्त थे सो ज्यादा देर दिल की बात दिल में ना रख सके और उसने खुल कर तो नहीं पर ये इशारा दे दिया था कि उसे एक साथी की कमी महसूस हो रही है
इस बात को अनदेखा करती हुयी मैं अंदर रसोईघर में चली गयी और बोली- मैं चाय बना कर लाती हूं चाय बना कर मैं अभी कप में डाल ही रही थी कि सुरेश वहां पहुंच गया मैं चौंक गयी पर खुद को संभाला और उसे चाय दी
वो चाय पीते पीते बात करने लगा और फिर एक ऐसा सवाल उसने मुझसे पूछा जिसके बारे में मैंने कभी सोचा ही नहीं था उसने मुझसे पूछा कि मैं बचपन के दिनों में उसके बारे में क्या सोचती थी